हा,ये बात अलग है की एक ही घटना में से हरेक इंसान कुछ ना कुछ अलग शीखता है। पर ये बात भी सही है की शीखता जरूर है। पर ये शीखने की कस्मकस में हम कही बार कही ना कही खो जाते है। हम एक धारणा कर लेते है जिंदगी की घटना हमें कुछ ना कुछ शीखायेगी या तो कोई इंसान उस घटना से कुछ शीखा जायेगा या तो उस घटना का सार शीखा जायेगा।
पर क्या असल में ऐसा होता है ? क्या हर बार हमें शीखाने के लिए कोई होना चाहिए ? क्या असल में हर बार कुछ शीखने का ही उदेश होना चाहिए ? ऐसे तो कितने प्रश्न उठते है मनमे पर इन प्रश्नो के जवाब सायद न मिल पाए। कारण ! क्योकि हर बार कुछ शीखने मिलेगा ऐसा सोच कर बैठा नहीं रहा सकता। अगर ऐसा सोच कर बैठे रहे तो सायद कितना कुछ पीछे छूट जाये।
कुछ बार जिंदगी के कुछ किस्से कुछ पलो को सिर्फ सच्चे मन से जी लेना ही काफी होता है। बस कुछ बार जिए हुइ ये क्षण ही हमें हमारी जिंदगी में अटकने नहीं देता। या तो हमारी जिंदगी को अटकने नहीं देता। शीखना , शीखने की भाषा में कहे तो सच्चे मन से जिए हुए पल ही कही बार बोहोत कुछ शीखा जाती है।
और इसी तरह ही ये पूरी बात की शीख भी यही है की हर बार कुछ प्राप्त करने से ज्यादा जरुरी सच्चे मन से जी लेना होता है। तो ये पाने की रेस में जीना शामिल कर दे तो सायद पाने की रेस सायद ज्यादा आनंददायी बन जाए। 
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