
आमतौर पर जब किसी इन्सान से ये पूछा जाता है की उसके जीवन में सबसे ज्यादा कौन मह्त्वपूण है तब उसके उत्तर में वो अपने परिवार के सभ्यो या तो मित्रो के ही नाम देता है। किसी भी इन्सान की दुनिया उसके परिवार और मित्रो के इर्द गिर्द ही बसी हुए होती है।
पर कही बार परिवार और मित्रो के बारे में जब सलाह मासफरा कीया जाता है तब उस इंसान को उसके मित्रो के प्रति स्नेह तथा लगाव को कम करने की सलाह दी जाती है। ऐसी परिस्थिति में कोइ भी ये बात को समझना नहीं चाहता के एक इंसान का उसके परिवार के अलावा उसके मित्रो के तरफ ज्यादा झुकाव क्यों रहता है। सायद दुनिया और समाज के कायदे कानून की वजह से इंसान अपने परिवार और मित्रो के बिच में फस जाता है। एक इंसान को उसके दोस्तों के पास से उसके परिवार जितना प्यार , अनुभूति , चिंता , साथ सब कुछ मिल जाता है। दोस्त उस इंसान का परिवार ही बन जाते है। पर उसका परिवार कही न कही कुछ गलतफैमी या फिर रीती रिवाजो की बजह से उसके मित्र नहीं बन पाते है। जब एक बच्चे का जन्म होता है तब उसके माता-पिता के लिए उनका बालक ही उनकी दुनिया होता है। लेकिन जैसे-जैसे बालक बड़ा होता है वैसे-वैसे समाज और दुनिया के डर से वही माता-पिता उनके बाच्चे को अनजाने में अपने से दूर कर देते है।
एक समय पर जो बच्चा अपने माता-पिता की दुनिया होता है उसी बच्चे की प्रगति , ज्ञान और मंजिल के रास्ते में उसके माता-पिता दुनिया का डर छिड़कते हो जाते है। समाज उसमे रहने वाले लोगो से बनता है। इस लिए अगर समाज में कोई बदलाव लाना हो तो उसके लिए शुरुआत किसी एक इंसान को ही करनी पड़ेगी।
जैसे एक व्यक्ति के लिए उसके दोस्त समाज या दुनिया का डर नहीं रखते वैसे ही उसके परिवार को भी एक पहल करनी पड़ेगी। जब कोई इंसान या उसका परिवार इस बात की गहराई को समाज कर एक नया कदम उठाएगा तब सायद समाज में परिवार और दोस्तों के बिच की खाइ भरने लगेगी। और वैसे भी कहा जाता है की मीठे आम खाने की लिए उसका बीज बोना पडता है। वैसे ही समाज में नए वातावरण को लाने के भी सच्चे और योग्य विचारो को पलना पड़ेगा।
पर कही बार परिवार और मित्रो के बारे में जब सलाह मासफरा कीया जाता है तब उस इंसान को उसके मित्रो के प्रति स्नेह तथा लगाव को कम करने की सलाह दी जाती है। ऐसी परिस्थिति में कोइ भी ये बात को समझना नहीं चाहता के एक इंसान का उसके परिवार के अलावा उसके मित्रो के तरफ ज्यादा झुकाव क्यों रहता है। सायद दुनिया और समाज के कायदे कानून की वजह से इंसान अपने परिवार और मित्रो के बिच में फस जाता है। एक इंसान को उसके दोस्तों के पास से उसके परिवार जितना प्यार , अनुभूति , चिंता , साथ सब कुछ मिल जाता है। दोस्त उस इंसान का परिवार ही बन जाते है। पर उसका परिवार कही न कही कुछ गलतफैमी या फिर रीती रिवाजो की बजह से उसके मित्र नहीं बन पाते है। जब एक बच्चे का जन्म होता है तब उसके माता-पिता के लिए उनका बालक ही उनकी दुनिया होता है। लेकिन जैसे-जैसे बालक बड़ा होता है वैसे-वैसे समाज और दुनिया के डर से वही माता-पिता उनके बाच्चे को अनजाने में अपने से दूर कर देते है।
एक समय पर जो बच्चा अपने माता-पिता की दुनिया होता है उसी बच्चे की प्रगति , ज्ञान और मंजिल के रास्ते में उसके माता-पिता दुनिया का डर छिड़कते हो जाते है। समाज उसमे रहने वाले लोगो से बनता है। इस लिए अगर समाज में कोई बदलाव लाना हो तो उसके लिए शुरुआत किसी एक इंसान को ही करनी पड़ेगी।
जैसे एक व्यक्ति के लिए उसके दोस्त समाज या दुनिया का डर नहीं रखते वैसे ही उसके परिवार को भी एक पहल करनी पड़ेगी। जब कोई इंसान या उसका परिवार इस बात की गहराई को समाज कर एक नया कदम उठाएगा तब सायद समाज में परिवार और दोस्तों के बिच की खाइ भरने लगेगी। और वैसे भी कहा जाता है की मीठे आम खाने की लिए उसका बीज बोना पडता है। वैसे ही समाज में नए वातावरण को लाने के भी सच्चे और योग्य विचारो को पलना पड़ेगा।
Comments